Tuesday, July 12, 2016

हर सुवह जब जनकपुर की महान सभ्यता फिरंगियों के बलात्कार से चीखती है !

जनकपुर : असार २९
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सुवह लगभग ४:३० बजे जब मैं जनकपुर में उठता हूँ, तो शीतल हवा के झोंको के साथ कोई पराती की आवाज नहीं, विद्यापति का कोई गीत नहीं, जानकी मैया का कोई भजन नहीं, अपनी मिट्टी की कोई स्तुति नहीं, मृदंग या ढोल का कोई ताल नहीं, बल्कि फिरंगी नेपाल सेना के परेड की आवाज आती है, और हवा के झोंकों में सुवह सुवह "मादल" की आवाज के साथ "सयौं थुंगा फुलका हामी, एउटै माला नेपाली", "आयो नेपाली" गीत गुञ्जती है। 

और जनकपुर जैसे महान सभ्यता का यह बलात्कार जनकपुर की २ लाख जनता निरिहता के साथ, हरेक दिन, होते हुए देखती है, चित्कार हरेक दिन सुनती है ! अब तो बहुत सारे जनकपुरवासी इस रोजाना के बलात्कार से अभ्यस्त हो चुके हैं, और इस बलात्कार में कोई बुराइयां तक भी नहीं देख पाते ! 

सुवह-सुवह जानकी मैया की छाती पर अपने बूट से रौंदते हुए जब फिरंगी नेपाली सेना मार्च करती है, और सुवह सुवह जब फिरंगियों का वह धून "आयो नेपाली" सुनना पड़ता है, तो बस हर सुवह वही कसम दोहराता हूँ कि जब तक इस फिरंगी नेपालियों से मधेश मां को आजाद करके, यहां के हवा में सुवह सुवह मधेश आजादी का गीत न गुंजे, जब तक जानकी मैया की छाती पर नेपाली फिरंगियों का वह ताण्डव नृत्य बंद न कर दूँ, तब तक चैन का एक भी सांस लेने का मुझे कोई हक नहीं ! वस यही प्रण के साथ मेरा हर दिन जनकपुर में प्रारम्भ होता है !

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