Sunday, July 17, 2016

अमेरिका ने उतरी चीन सिमा पर मिसायल खसाना किया सुरु । अमेरिकाको भारत भि देगा साथ ।

जनकपुर: सावन ३ ।

चीन और अमेरिका के बीच विवाद निपटने के लिए ये केस अंतरराष्ट्रीय अदालत जा चुका है। लेकिन चीन ने अदालत को मानने से ही इनकार कर दिया है। सवाल ये है कि आखिर तीसरे विश्वयुद्ध का ये डर घटेगा कैसे, क्योंकि दोनों ही मुल्क अगर भिड़े तो एक दूसरे को तबाह तो करेंगे ही भारत समेत तमाम मुल्क भी बर्बाद हो जाएंगे। चीन और अमेरिका दुनिया की दो सबसे बड़ी सैनिक ताकतें हैं। चीन की पीपुल्स रिपब्लिकन आर्मी में 22 लाख 85 हजार फौजी हैं। जबकि अमेरिका की फौज में 13 लाख 69 हजार फौजी हैं।
दो बड़ी ताकतें और दोनों की धमक समुद्र के हिस्से पर बादशाहत की लड़ाई ने दोनों को आमने-सामने ला खड़ा किया है। चीन ने अपने नकली टापुओं पर राडार लगा रखे हैं, जिनसे उसे अमेरिकी टोही विमान या जंगी जहाज के आने की भनक काफी पहले ही लग जाती है। शायद इसलिए जैसे ही अमेरिका का USS LASSEN चीन के दो नकली टापुओं के पास के 12 नॉटिकल माइल इलाके में पहुंचा खतरे की घंटियां बजने लगीं। तुरंत बीजिंग में अमेरिकी राजदूत को बुलाकर इस घुसपैठ पर नाराजगी जता दी गई।

उधर समुद्र में भी हलचल कई गुना बढ़ गई। तनाव इस कदर बढ़ गया कि दोनों देशों की नौसेनाओं के एडमिरल को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर सुलह करनी पड़ी। अच्छे अच्छे बयानों के कई दौर चले, लेकिन दोनों मुल्कों के तेवर ढीले नहीं पड़े। यानि भारत समेत पूरे एशिया पर अब भी इस युद्ध का खतरा मंडरा रहा है।

पेंटागन के प्रवक्ता ने बताया कि अमेरिका और चीन के एडमिरल ने समुद्र में आजादी के साथ आने-जाने और दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच अच्छे रिश्तों के लिए बातचीत की। वार्ता में आला नेताओं के एक दूसरे से संपर्क और आगे की वार्ता जारी रखने पर भी जोर दिया गया।

अमेरिका ने ये भी साफ कर दिया कि इस तनाव के चलते चीन ने अपने जहाजों को फ्लोरिडा भेजने का प्लान कैंसिल नहीं किया है न ही अमेरिकी नौसेना के पैसिफिक कमांड के कमांडर के चीन दौरे पर कोई फर्क पड़ा है। लेकिन जमीन पर तनाव बढ़ रहा है। बताया जा रहा है कि अमेरिका ने अपने बेहद खतरनाक बम वर्षक विमान B-1 Bomber को ऑस्ट्रेलिया में तैनात कर दिया है।

B-1 बॉम्बर लंबी दूरी तक उड़ सकते हैं और इन्हें दुनिया का सबसे आधुनिक और खतरनाक विनाशक माना जाता है। बताया जाता है कि ये विमान किसी भी इलाके पर 84500 पाउंड वजन के बम बरसा कर तबाही ला सकते हैं। इस वक्त अमेरिका इन बॉम्बर विमानों का इस्तेमाल सीरिया में आईएसआईएस के ठिकाने तबाह करने के लिए कर रहा है।

बताया ये भी जा रहा है कि अमेरिका ने अपने बेहद आधुनिक एफ-35 विमानों की टुकड़ी जापान के फौजी ठिकानों पर तैनात कर दी है, ये विमानों की सीधी जद में दक्षिणी चीन का समुद्र आता है। वैसे भी अमेरिकी रक्षा मंत्री ऐश कार्टर पहले ही कह चुके हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुद्र में किसी के भी आने जाने पर पाबंदी अमेरिका बर्दाश्त नहीं करेगा।

चीन नहीं चाहता कि अमेरिका दक्षिणी चीन के इलाके में दखल दे, क्योंकि अमेरिका के अलावा किसी दूसरे मुल्क में इतनी हिम्मत भी नहीं है कि वो उस इलाके पर सीधी नजर रख सके। अमेरिका को शक है कि चीन अपने नकली टापुओं पर खुफिया सैनिक ठिकाने बना रहा है। इसलिए उसके जंगी जहाज उन टापुओं के आसपास मंडराते रहते हैं।

तो क्या वाकई में इस तनाव के चलते दुनिया में तीसरा विश्व युद्ध छिड़ सकता है। गोलबंदी भी कुछ इसी ओर इशारा कर रही है। जहां अमेरिका की दक्षिणी चीन में मौजूदगी का फिलिपींस, मलेशिया, ताइवान समर्थन कर रहे हैं वहीं रूस की इस मामले में खामोशी कुछ दूसरे संकेत दे रही है। वैसे भारत ने भी दक्षिणी चीन में चीन के बढ़ते प्रभुत्व पर चिंता जताकर अपना पक्ष साफ कर दिया था।

जाहिर है चीन और अमेरिका दोनों परमाणु बमों से लैस हैं इसलिए दोनों के बीच तनाव खतरे का सबब है। आंकड़ों के मुताबिक, जहां अमेरिका के पास 1900 परमाणु बम हैं वहीं चीन के पास 230 परमाणु बम हैं। जहां अमेरिका के पास 15000 किलोमीटर तक सतह से सतह तक मार करने वाली मिसाइल है। वहीं चीन के पास भी 14000 किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइल है।

दिलचस्प बात ये है कि समुद्र पर कब्जे का ये झगड़ा अब अंतरराष्ट्रीय अदालत भी जा चुका है। फिलिपींस की 2013 की अपील पर हेग में अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल ने चीन के खिलाफ फैसला सुनाया है, साफ कह दिया है कि विवादित इलाके के केस की सुनवाई का हक उसे है। फिलिपींस ने आरोप लगाया है कि समुद्री इलाके पर कब्जे का ये मुद्दा संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के मुताबिक सुलझाया जाए लेकिन चीन ने हेग की अदालत के अधिकार को ही चुनौती देते हुए इस मुकदमे में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है।

चीन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयुंग का कहना है कि चीन दक्षिण चीन के समुद्र में आवाजाही की आजादी के हक में है, लेकिन इसका अर्थ दूसरे मुल्क के इलाके में जंगी जहाज और विमान उतना कत्तई नहीं होता, ये हमें स्वीकार्य नहीं है।

हेग में बनी अंतरराष्ट्रीय अदालत अब इस केस का फैसला अगले साल सुनाएगी, लक्षण दिख रहे हैं कि ये फैसला चीन के खिलाफ जाए, सवाल ये है कि क्या इस अदालत क अस्त्तित्व पर ही सवाल खड़े कर रहा चीन ऐसे किसी भी फैसले के आगे सिर झुकाएगा। जो भी हो, इस कानूनी प्रक्रिया पर अमेरिका भी चटखारे लेकर चीन को चिढ़ाने में लगा हुआ है, उसने साफ कह दिया है कि वो ऐसे किसी भी फैसले का स्वागत करता है।

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